⋇⋆✦⋆⋇ ...हिन्दी गद्य पद्य की प्रतिपादक है... ⋇⋆✦⋆⋇
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हिन्दी भाषा स्वाभिमान की
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हिंदी हिन्द देश की भाषा है!
ये समस्त राष्ट्र की आशा है!!
इतिहास है ग़ौरव गाथा की!
संस्कृति,परम्परा की परिभाषा है!!
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हम सब मिल कर सम्मान करें!
हिंदी भाषा का मान करें!!
ये परम कर्तव्य हम सबका है!
निज भाषा पर स्वाभिमान करें!!
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ये मीठी,सरल सुकोमल है!
ये सुन्दर,सरल मनोरम है!
साहित्य का सागर है अनंत!
समाहित ज्ञान का गागर है!!
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शारदा के भाल का वरद हस्त!
है एकता की परम्परा अनुपम
हिन्द देश की भाषा है कालजयी
है सहज अभिव्यक्ति का आधार
हम सबको है हिंदी से प्यार!!
मेरे राष्ट्र को है हिंदी से प्यार!!
@ मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
हम सब हिंदी अपनाएं
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हिंदी भाषा मान हमारा, हिंदी है अभिमान हमारा।
आओ मिल कर सभी बनाए हिंदी स्वाभिमान हमारा।
हिंदी में हम हंसते गाते, हिंदी में मुस्काते है।
हिंदी में ही स्वप्न सजाते, हिंदी मैं इठलाते हैं।
हिंदी में ही बचपन बीता, चढ़ी जवानी हिंदी में।
हिंदी में ही हिन्द के बासी खुशियां सभी सजाते है।
आओ हम सब मिल जुल कर हिंदी भाषा को अपनाये।
हिंदी में ही बच्चों को, गीता रामायण पढ़वाए।
जो सरहद पर प्राण गवाएं, लिखो कहानी हिंदी मैं।
शिक्षाप्रद प्रेरक अनुभूति हिंदी में ही बतलाएं ।
लोरी गीत और संस्कारों को हिंदी में ही गाते हम।
आओ सब मिल जुल कर के हिंदी भाषा अपनाते हम।
हिंदी में ही जन्म लिए थे, हिंदी में हम खड़े हुए।
हिंदी में ही माती खा ली।हिंदी में ही बड़े हुए ।
फिर क्यूं तुमने गैर बनाया अपनी हिंदी माता को।
सात समंदर पार बसे जोड़ी इंग्लिश से नाता को।
मैं तो तुझको भूल ना पाई तुम ही हो मुझको बिसराए।
चन्द दौलत के मोह में फंस के, तुम तो कर गए मुझे पराए।
निज गौरव निज शान है हिन्दी जन जन का अभिमान है हिंदी ।
आओ मिल जुल इसे बनाए, राष्ट्र की निज उत्थान है हिंदी।
राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा दे कर स्वाभिमान बढ़ाये हम
हिंदी भाषा का दुनियां में मिल कर मान बढ़ाएं हम।
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
हिंदी भाषा का महत्व
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हिंदी दिवस यानी १४ सितम्बर १९४९ को देव नागरी लिपि यानि हिंदी भाषा को संविधान सभा द्वारा आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकृत किया गया। हिंदी भाषा मॉरीशस फ़िजी, सूरीनाम,यूयांग,नेपाल टोबैगो आदि कई देशों में बोली जाती है।
हिंदी भाषा विश्व में चौथी सबसे ज्यादा बोली जाने वाली भाषा है।
२०० सालो की ग़ुलामी से आज़ादी के उपरान्त संविधान निर्माताओं को एक हिंदी भाषा ही ऐसी प्रभावकारी सरल भाषा लगी जो समस्त देश को आपस में जोड़ सकती हैं।
कुछ प्रांतों के लोगों नें इसका जमकर विरोध भी किया किन्तु उसके पश्चात भी हिंदी अनुक्षेद ३४३ के अंतर्गत इसे आधिकारिक भाषा के रूप में स्वीकार कर लिया गया।
जहाँ हिंदी भाषा पढ़ने लिखने और समझने में सहज और सरल है, वहीँ हिंदी भाषा की शब्दावली इतनी समर्थ है की हिंदी भाषा के माध्यम से हम सभी विषयों को सरलता से अभिव्यक्त कर सकतें हैं। जितनी सहजता से हम अपनी अभिव्यक्ति हिंदी भाषा में कर सकते हैं उतनी सरलता से किसी और भाषा में नहीं।
चूँकि हिंदी भाषा सर्व गुण संपन्न है इसलिए इसे राज भाषा के रूप में चुना गया है।
हालाँकि कोई भी भाषा केवल अनुपम साहित्य होने की दलील दे कर राष्ट्र भाषा नहीं बन सकती बल्कि इसे रोजगार, ज्ञान विज्ञान नई तकनीक और संचार की भाषा के रूप में ढलना होगा। उच्च गुणवत्ता और बौद्धिक स्तर पर विकसित करना होगा इसे,तब कहीं जा कर हिंदी को राष्ट्र भाषा का दर्ज़ा मिल सकेगा। क्यूंकि आज भी कुछ कमियाँ हैं जो हिंदी भाषा के विकास में बाधक है। वैश्विक स्तर पर हिंदी भाषा की पहचान और गुणवत्ता को प्रतिष्ठा दिलाने के लिए कुछ आवश्यक सुधार की आवश्यकता है।
हिंदी के संकीर्ण नजरिये को बदलने के लिए हमें एक जन अभियान चला कर
जन जन को संकल्प लेने के लिए प्रेरित करना होगा।
हिंदी भाषा का अधिक से अधिक इस्तेमाल हो इसके लिए १४ सितम्बर को अनेको कार्यक्रमों के द्वारा जन जागरूकता अभियान चलाया जाता है।
कई कार्यालयों में हिंदी पखवाड़ा मनाया जाता है। जिसके तहत सारे काम काज हिंदी में ही किया जाता है।
.. मानती हूँ की आज के परिवेश में हम चाह कर भी पूर्ण रूप से हिंदी को ग्रहण नहीं कर सकते क्योंकि जब हम किसी भी नौकरी के लिए साक्षात्कार देने जाते है तो वहां पर हमसे इंग्लिश में ही प्रश्न पूछे जाते हैं, हम अपने बच्चे को स्कूल में दाखिले के लिए जातें हैं तो वहां पर बच्चे के साथ साथ माता पिता को भी अपनी योग्यता का प्रमाण पत्र देना पड़ता है। ऐसी परिस्थितियों में हर इंसान क्या करे ?
ऐसी परिस्थितियों में हमें अपने बच्चों को अपने घर में ही अपनी सभ्यताऔर
संस्कारों को सिखाये।
बच्चों को वेद,पुराण, गीता, रामायण जैसी धार्मिक पुस्तकों के अध्ययन के लिए प्रेरित करें और अपनी मातृ भाषा तो जरूर सिखाएं!
ताकि हमारी आने वाली पीढ़ी अपने पूर्वजों को पहचान सके हमारे संस्कारों को और इनके मूल्यों को बचा सके। आज की पीढ़ी जहाँ पश्चिमी सभ्यता के दलदल में आकंठ डूबती जा रही है और उस अंधी दौड़ में शामिल हो रही है, उससे बचाने का बस एक ही रास्ता है
हमें अपने घरों में ही मन्त्र हवन गीत ,भजन अपने बच्चों को सीखाना होगा। अपनी परंपरा अपने धर्म आपस में प्रेम से रहना, रिश्ते निभाना जो आज कल हम लोग भूलते जा रहें है और आपसी सहिष्णुता इत्यादि ।
हमें अपने बच्चों को हिंदी का मूल्य समझाना होगा, गिनती पहाड़ा ,ताकि बच्चे ये ना कह सके की उन्चास क्या होता है ? उंचालीश मतलब कितना होता है ? जब बच्चे ऐसा कहते हैं तो कहीं न कहीं शर्मिंदगी माता पिता को भी उठानी पड़ती है। इसलिए मेरा ये सुझाव है उन सभी बुद्धि जीवी माता पिता से की अपनी आने वाली पीढ़ी को एक संस्कारी और गौरवशाली पीढ़ी के रूप में तैयार करें ताकि हम अपनी धरोहर को बचा सकें, बच्चे संस्कार वान बने और एक गौरव शाली राष्ट्र का निर्माण हो।
जय हिन्द जय हिंदी
मणि बेन द्विवेदी
वाराणसी उत्तर प्रदेश
©मणि बेन द्विवेदी
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